“कैंसर” यह शब्द सुन कर अक्सर घबराहट होती है, रौंगटे खड़े हो जाते है। स्वाभाविक है। इस बीमारी से जुडी असाहयता और निराशा अत्यंत दुःखदायी है। भोजन प्रणाली के कैंसर का अक्सर देर से पता लगता है । प्राकृतिक सुराग को मद्देनज़र रखते इस बीमारी का जल्द निदान करना सबसे अधिक मदद करता है।
लक्षणों से जानकार मरीज़ सही समय पर डॉक्टर से सलाह लेते है।
निम्नलिखित लक्षण सामान्य तौर पे कैंसर दर्षाते है (विशेष रूप से बुजुर्गो में)
- छोटी अवधि में अनपेक्षित काफी वजन घटना।
- भूख में कमी (खाने की इच्छा नहीं होना, बहुत कम मात्रा में खाना।
- शरीर में गांठ (हाल ही में शुरुआत हुई या तेजी से बढ़ती हुई)
- कुछ दिनों से अधिक समय तक चलने वाले आंत की आदतों में बदलाव (नई शुरुआत दस्त / कब्ज या मल के कैलिबर का संकुचित होना)
भोजन प्रणाली के विभिन्न अंगों के प्रभावित होने से निम्नलिखित विशिष्ट शिकायतों में से एक होती है:
- भोजन नली के कैंसर में निगलने में मुश्किल होती है । शुरुआत में तरल पदार्थ की तुलना में ठोस पदार्थ निगलने में ज्यादा मुश्किल होती है। बीमारी के बढ़ते सब कुछ निगलना मुश्किल होता है और अक्सर मरीज़ लार भी नहीं निगल पाते।
- लगातार बड़ी मात्रा में उल्टी अक्सर पेट के कैंसर की तरफ दर्शाता है । अक्सर चंद दिनों पहले खाया खाना उल्टी में आता है। गाँठ अक्सर पेट के मूह को बंद कर, भोजन को भीतर इकट्ठा करके रखती है।
- मल में लाल रक्त की उपस्थिति या काले रंग का मल होना एक अशुभ संकेत है और इसकी जांच करनी चाहिए। इस लक्षण वाले सभी रोगियों को कैंसर नहीं होता, लेकिन इसकी जांच कराना अत्यावश्यक है। यदि बुजुर्ग पुरुषों में आयरन की कमी से एनीमिया (रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर कम होना) देखा जाता है, तो कोलोरेक्टल कैंसर (बड़ी आंत का कैंसर) का संदेह बहुत अधिक है।
- रेक्टम (बड़ी आंत की अंतिम 6 इंच) के कैंसर में टेनेस्मस आम है । मरीजों को बार बार शौच करने की इच्छा होती है पर कुछ होता नहीं है। उन्हें अक्सर दिन में कई बार वॉशरूम जाना पड़ता है।
- घटता -बढ़ता या लगातार बढ़ता पीलिया (आंखों का पीलापन), अग्न्याशय (पैंक्रियाज), पित्त नलिकाओं और पित्ताशय की थैली के कैंसर में आम है। पित्त (यकृत में उत्पन्न द्रव) के सामान्य प्रवाह के यांत्रिक अवरोध से पीलिया हो जाता है। यह अक्सर गहरे पीले रंग के मूत्र, मिट्टी के रंग का सफेद मल और पूरे शरीर में गंभीर खुजली के साथ होता है।
यदि कैंसर का पता प्रारंभिक स्तर पर लग जाता है, जब वह अभी तक फैला नहीं है, तो उपचार (सर्जरी +/- कीमोथेरेपी +/- रेडियोथेरेपी) के साथ अच्छे परिणाम आने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
धन्यवाद
डॉ हेमंत जैन
MS (जनरल सर्जरी) MCh (जीआई सर्जरी)
लेप्रोस्कोपिक अवं जीआई सर्जन.
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी अवं जीआई कैंसर सर्जरी के विशेषज्ञ
विजिटिंग कन्सल्टन्ट :
नानावती अस्पताल (विलेपार्ले), क्रिटिकेयर अस्पताल (अंधेरी), उपासनी सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, मुलुंड (पश्चिम)
ओपीडी :
स्टार हेल्थकेयर, अंधेरी (पश्चिम) रोज 5 से 6 बजे
उपासनी सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, मुलुंड (W)